संक्षिप्त इतिहासः बुद्ध, गोरखनाथ और कबीर की वाणी से आन्दोलित होने वाला यह पूर्वांचल एक महान` परम्परा वाला क्षेत्र् रहा है। प्रेमचन्द इस परम्परा की अन्तिम कड़ी थे। दुभार्ग्यवा वह परम्परा किन्हीं कारणों से विच्छिन्न हो गयी। आज परिणाम यह हुआ है कि इस क्षेत्र् की सांस्क्रतिक पहचान जैसे खो गई है। उस पहचान को वापस लाने के लिये, एक प्रकार से पूवीर् उत्तार प्रदेा के सांस्क्रतिक नवजागरण को स्फुरित करने के लिये गोरखपुर में ॑प्रेमचन्द साहित्य संस्थान॔ की परिकल्पना की गयी। प्रो.सदानन्द ााही की पहल पर कुछ उत्साही युवाओं ने मिलकर १९९ में प्रेमचन्द के ऎतिहासिक आवास को उनके एक स्मृति केन्द्र के रूप में संजोते हुए उसे उसके भूगोल में सांस्क्रतिक नवजागरण का प्रतीक बनाने का सपना देखा जिसे अमृतराय, भीम साहनी, माकर्ण्डेय, नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, दूधनाथ सिंह, एस. आर. किदवई जैसे अनेक साहित्यकारों एवं िाक्षाविदों का समथर्न मिला। ऎसे संस्थान कलाकारों, लेखकों के आवास को उनके स्मृति केन्द्र के रूप में सुरक्षित रखने के उदाहरण के रूप में विव में थोड़े ही हैं। प्रेमचन्द साहित्य संस्थान उन कतिपय ला?ानीय प्रयासों में से एक है। प्रेमचन्द के साहित्य में भारतीय परम्परा के श्रेयस` तत्तव को सुरक्षित रखते हुए जो आधुनिक अग्रगामी दृिट है वह अनन्य है। प्रेमचन्द साहित्य के केन्द्र में उस सामान्य जन को लाये जिसे की लगभग अद्धरताब्दी बीतने के बाद भी भारतीय समाज में केन्द्रीयता नहीं प्राप्त हो सकी थी। ॔वििाट॑ के स्थान पर ॔सामान्य॑ के सौन्दर्य को उद`?ााटित कर उन्होंने हमारे सौन्दर्य बोध को जातिवादी और सामन्ती जकड़बन्दी से मुक्त किया, उसे अधिक उन्मुक्त और उदात्ता बनाया। प्रेमचन्द का साहित्य हमारे स्व का विस्तार करता है और हमारे भीतर अपनी परम्परा के प्रति आलोचनात्मक विवेक उत्पन्न करता है। इस उदात्ता परम्परा बोध से सम्पन्न यह संस्थान आज साहित्य, संगीत और कला के जनपक्षधर विकास को समपिर्त है। निजी अनुदानों से संचालित यह संस्था समय समय पर काव्यपाठ, कहानी"पाठ, विचार गोिठयाँ और रचना प्रतियोगिताएँ आयोजित करता रहा है। प्रत्येक स्थानीय प्रयासों को राट्रीय फलक देते हुए यह प्रत्येक र्वा प्रेमचन्द जयन्ती का आयोजन करता है।
इन आयोजनों में नामवर सिंह, श्रीलाल ाुक्ल, असगर वज़ाहत, कँुवरपाल सिंह, गंगा प्रसाद विमल, राजकिाोर, प्रो. चन्द्रकला पाण्डेय पूर्व सांसद एवं सुश्री सुभािानी अली सहगल पूर्व सांसद जैसे विद्वानों के व्याख्यान हुए है। विजयदान देथा, दूधनाथ सिंह, नीलकांत सहित अनेक युवा कहानीकारों का कहानी पाठ त्र्लिोचन, केदारनाथ सिंह, अरुण कमल, बोधिसत्व, क्रणमोहन झा, जितेन्द्र श्रीवास्तव, पंकज चतुवेर्दी जैसे कवियों के काव्य पाठ इसके महत्वपूर्ण आयोजन रहे हैं। संस्थान ने सन` १९९३"९४ में राहुल सांक्रत्यायन की जन्माती पर विोा आयोजन किये। सन` १९९६ में ॔दलित साहित्य की अवधारणा और प्रेमचन्द॑ पर आयोजित राट्रीय संगोठी को राट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हुई। संस्थान के निदेाक प्रो. सदानन्द ााही के सम्पादकत्व में इसी नाम से प्रकािात पुस्तक ने दलित विमार् में भी कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलू जोड़े और पूवीर् उत्तार प्रदेा में दलित विमार् को गति और दिाा दी।
सन` १९९७ में निराला जन्माती पर ॔निराला और उत्तार औपनिवेिाक समय॑ विाय पर एक अत्यन्त महत्वपूर्ण राट्रीय संगोठी आयोजित की गई, जिसमंे हिन्दी तथा अनेक भारतीय भाााओं के महत्वपूर्ण रचनाकारों की हिस्सेदारी थी।विख्यात कवि त्र्लिोचन सहित अनेक संस्क्रति कर्मियों को संस्थान समय समय पर सम्मानित करता रहा है। जिसमें पद`मविभूाण तीजनबाई भी ाामिल हैं।कबीर के ६ वीं जयन्र्तीवा में कबीर पर अनेक आयोजन किये गए जिनमें ॔कबीर का अनभै साँच॑ विाय पर नामवर सिंह का प्रसिद्ध व्याख्यान ाामिल है। कबीर पर एक दिवसीय राट्रीय संगोठी भी आयोजित की गई। प्रेमचंद की १२५ वीं जयन्ती र्वा में संस्थान ने पूरे साल आयोजन किये। इस आयोजन का आरम्भ नामवर सिंह के प्रसिद्ध व्याख्यान ॔प्रेमचन्द पुनः पुनः॑ से गोरखपुर में हुआ। ॔प्रेमचन्द और स्त्र्ी विमार्॑ ाीार्क राट्रीय संगोठी मंे प्रो. चन्द्रकला पाण्डे सांसद, राज्यसभा सुभािानी अली सहगल पूर्व सांसद, प्रो. पी. एन. सिंह, प्रो. र?ाुवंा मणि आदि ने हिस्सेदारी की। प्रेमचन्द के १२५ वें जन्म र्वा पर संस्थान के आयोजनों में सबसे महत्वपूर्ण आयोजन ॑गोदान को फिर से पढ़ते हुए॔ ाीार्क अन्तरार्ट्रीय संगोठी ५ से ८ नवम्बर २५ थी। प्रेमचन्द की सबसे महत्वपूर्ण और कालजयी क्रति गोदान के बहाने प्रेमचन्द पर समकालीन सन्दभोंर् में बातचीत हुई। प्रेमचन्द संस्थान की साहित्य दृिट में एक ओर हिन्दी प्रदेा की सांस्क्रतिक चिंताएँ हंै, तो दूसरी तरफ वैिवक सांस्क्रतिक चिंताएँ है। वैिवक सभ्यता विमार् को ख्याल में रखते हुए संस्थान ने ॔वी.एस. नॉयपाल का भारत॔ और ॔एडवडर् सईद और समकालीन बौद्धिक विमार्॑ विायक महत्वपूर्ण संगोिठयाँ आयोजित कीं हैं। साहित्यिक और अकादमिक बहसों की साथर्कता उनके सामान्य जन तक पहुचने में है।
इसी दृिट से संस्थान प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह के संपादन में महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्र्किा ॔साखी॑ का प्रकाान करता है। इसके अतिरिक्त ॑कर्मभूमि॔ नामक स्मारिका तथा प्रेमचन्द ?ार"?ार में योजना के तहत अनेक प्रकाान योजनाएं भी संचालित करता है। वतर्मान वैिवक सांस्क्रतिक परिदृय में स्त्र्ी विमार् एक महत्वपूर्ण मुद`दा है। महादेवी वमार् हिन्दी प्रदेा की ऎसी रचनाकार हैं जिन्होने स्त्र्ी की वेदना को स्वर दिया है और उसकी मुक्ति का पथ प्रास्त किया है। संस्थान महादेवी के जन्माती र्वा में उनके साहित्य का पुनर्मूल्यांकन स्त्र्ी मुक्ति के भारतीय प्रतीक के रूप में करने का प्रस्ताव करता है। इटली के तूरीनो विवविघालय से प्रेमचन्द साहित्य संस्थान का विगत तीन"चार वाोर्ं से अनुबन्ध है। वहाँ के छात्र् हिन्दी सीखने तथा कबीर और प्रेमचन्द का विोा अध्ययन करने र्वा मेंं दो बार संस्थान आते है। इस तरह प्रेमचन्द संस्थान की सक्रियता के स्थानीय, राट्रीय एवं अन्तरार्ट्रीय आयाम हैं।
उद`देय एवं कार्यः सामाजिक परिवतर्न एवम` विकास में साहित्य की वििाट भूमिका होती है। प्रेमचन्द साहित्य को जीवन की आलोचना मानते थे। जीवन की सकारात्मक आलोचना से साहित्य जीवन और समाज के परिवतर्न तथा विकास में अपनी भूमिका अदा करता है। साहित्य की इस भूमिका को संभव बनाने के लिए प्रेमचन्द साहित्य संस्थान की स्थापना की गयी है। संस्थान का उद`देय प्रेमचन्द और उनकी विचारधारा के समस्त सजर्नात्मक साहित्य का अध्ययन, मूल्यांकन, अनुसंधान तथा प्रचार"प्रसार करना है।
ाोध केन्द्रः संस्थान एक ऎसा केन्द्र होगा जिसमें देा विदेा के ाोधाथीर् प्रेमचन्द और उनकी विचारधारा के साहित्य का विोा अध्ययन विलेाण तथा अनुसंधान कर सकें। प्रेमचन्द भारत की जातीय चेतना के रचनाकार थे, इस रूप में प्रेमचन्द ने केवल हिन्दी साहित्य नही, अपितु, समूचे भारतीय साहित्य को प्रभावित किया है। इस ाोध केन्द्र का प्रयास होगा कि समूचे भारतीय साहित्य के परिप्रेक्ष्य में प्रेमचन्द का अध्ययन और सम्यक` मूल्यांकन संभव हो सके। स्वाधीनता आन्दोलन और उसके समानान्तर चलने वाले किसान आन्दोलन की गहरी छाप प्रेमचन्द की रचनाओं मंे दिखाई पड़ती है। इस रूप में प्रेमचन्द के साहित्य पर ाोध के क्रम में स्वतंत्र्ता पूर्व होने वाले आन्दोलनों के प्रक्रति की छान"बीन भी संभव हो सकेगी।
प्रकाानः प्रेमचन्द साहित्य संस्थान ॔साखी॑ त्र्ैमासिक पत्र्किा का प्रकाान कर रहा है। संस्थान के उद`देयों को साकार करने तथा पाठकों की सांस्क्रतिक चेतना को उन्नत करने हेतु ॔साखी॑ नामक पत्र्किा प्रकािात की जा रही है। सुप्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह इसके प्रधान सम्पादक हैं।
पुस्तकालयः प्रेमचन्द साहित्य संस्थान एक नियमित पुस्तकालय का संचालन कर रहा है। पुस्तकालय में प्रेमचन्द की परम्परा के श्रेठ साहित्य का संकलन किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त वैचारिक और सामाजिक विायों से संबंधित श्रेठ चिन्तनपरक साहित्य का भी संकलन किया जा रहा है। संस्थान के पुस्तकालय में बच्चों के लिए एक अनुभाग ाुरू किया गया है। इसके अतिरिक्त वैचारिक और सामाजिक चेतना विकसित करने के लिए यह पुस्तकालय कार्य कर रहा है। १४ माचर् १९९६ से यह पुस्तकालय अब प्रेमचन्द पाकर् स्थित ऎतिहासिक प्रेमचन्द निकेतन में हैं जहाँ नार्मल स्कूल में अध्यापन करते हुए प्रेमचन्द १९१६ से १९२१ तक रहे थे।
पाठक सेवाः संस्थान श्रेठ रचनात्मक साहित्य के प्रचार प्रसार के लिए पाठक सेवा संचालित कर रहा हैं।
मासिक रचना गोठीः नये रचनाकारों को प्रोत्साहित करने तथा पुराने रचनाकारों की नयी क्रतियों से परिचित होने के लिए संस्थान मासिक रचना गोिठयों का आयोजन कर रहा है। इसके अतिरिक्त संस्थान कुछ महत्वपूर्ण कवियों और चिन्तकों की जयन्तियों एवं पुण्यतिथियों पर आयोजन करके उनके विचारों का प्रचार प्रसार करता है।
प्रेमचन्द साहित्य पुरस्कारः संस्थान प्रेमचन्द की साहित्य परम्परा को प्रोत्साहन देने के लिए साधन उपलब्ध होते ही हर दूसरे र्वा प्रेमचन्द की परम्परा के श्रेठ भारतीय लेखक को प्रेमचन्द साहित्य पुरस्कार से सम्मानित करेगा।
अध्येता वृतिः आथिर्क स्रोत उपलब्ध होने पर संस्थान प्रेमचन्द सम्बधी ाोध कार्य को प्रोत्साहित करने के लिए अध्येतावृत्तिायां भी उपलब्ध कराएगा।
प्रेमचन्द स्मृतिकक्षः संस्थान प्रेमचन्द स्मृतिकक्ष के रूप में एक संग्रहालय स्थापित करने का प्रयास कर रहा हैंं। जिसमें प्रेमचन्द की पाण्डुलिपियाँ, पत्र्, उपयोग की गयी सामग्री तथा दुलर्भ चित्र् आदि जुटाये जा रहे हंै।
अतिथि गृहः संस्थान एक सुसज्जित अतिथिगृह की व्यवस्था करेगा जिसमें बाहर से आने वाले ाोधाथिर्यों को आवास की सुविधा दी जा सके।
प्रेमचन्द विवदृिट सम्पन्न लेखक हैं। उनके पाठक और अध्येता पूरी दुनिया में फैले हुए है। इस संस्थान के माध्यम से प्रेमचन्द और उनकी परम्परा के साहित्य पर केन्दि्रत अध्ययन विलेाण"संवाद प्रकाान आदि को सुव्यवस्थित योजना के अनुरूप वित्तीय सहायता राट्रीय, प्रादेिाक तथा स्थानीय सभी स्तरों पर अपेक्षित होगी। हम जनता एवं प्राासन दोनों को इस महान आयोजन में भागीदार बनाना चाहते हैं।
आप प्रेमचन्द साहित्य संस्थान का सहयोग कर सकते हैं।
१. संस्थान की गतिविधियों में भागीदारी करके।
२. संस्थान की पत्र्किा ॔साखी॑ तथा संस्थान पुस्तकालय का वािार्क/आजीवन सदस्यता ग्रहण करके।
३. संस्थान पुस्तकालय के लिए आथिर्क तथा पुस्तकीय सहयोग देकर। विोाः पुस्तकालय को ५/का आथिर्क सहयोग देने पर दाता अथवा उसके द्वारा प्रस्तावित नाम पर पुस्तक खण्ड स्थापित करने की व्यवस्था है। इस क्रम में सदााय िावरत्न लाल खण्ड स्थापित किया जा चुका है।
४. संस्थान की गतिविधियों के संचालन के लिए सहयोग हेतु संकल्प पत्र् भर कर।
५. संस्थान द्वारा प्रस्तावित ॔प्रेमचन्द स्मृति कक्ष॑ के लिए प्रेमचन्द की पाण्डुलिपि, चित्र् उपयोग की गई सामग्री तथा इस सम्बन्ध मंे सुझाव भेजकर।
६. संस्थान की गतिविधियों में सहभागिता तथा सहयोग के लिए लोगों को प्रेरित करके। आपके सक्रिय सहयोग एवं सुझाव की प्रतीक्षा रहेगी।
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